डेंटल कॉलेजों में बीडीएस की 40 से 50 फीसदी सीटें हर साल खाली रह जाती हैं। यह ट्रेंड केवल पिछले साल का नहीं, बल्कि छह साल से चल रहा है। केवल सरकारी कॉलेज की 90 फीसदी या कभी-कभी शत-प्रतिशत सीटें भर पाती हैं।
इस साल भी 191 सीटें खाली रह गईं। एडमिशन की आखिरी तारीख तक नहीं भरने के कारण ये सीटें लैप्स भी हो गईं। लगातार सीटें खाली रहने से प्रदेश में पिछले 10 सालों में एक भी नया डेंटल कॉलेज नहीं खुला है। दूसरी ओर प्रदेश में मेडिकल व नर्सिंग कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। प्रदेश में केवल एकमात्र सरकारी डेंटल कॉलेज है। प्रदेश सरकार ने अब तक दूसरे कॉलेज के लिए प्रयास भी नहीं किया। डेंटल कॉलेजों में चार राउंड के बाद खाली 241 सीटों को भरने के लिए विशेष राउंड की काउंसिलिंग की गई, लेकिन इसका खास फायदा नहीं हुआ। इन सीटों को भरने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने दो दिन पोर्टल खोला था। इसमें केवल 20 नीट क्वालिफाइड छात्रों ने ऑनलाइन पंजीयन किया। 31 अक्टूबर तक बीडीएस की 600 में 359 सीटों पर एडमिशन हो चुका था।
बाकीकी सीटों को भरने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 15 नवंबर तक का समय दिया था। इस तारीख तक खाली 241 में महज 50 के आसपास सीटें ही भर पाईं। जबकि इसके लिए नीट क्वालिफाइड छात्र 6300 से ज्यादा थे। इनमें 1910 छात्रों ने एमबीबीएस में एडमिशन लिया है। 5 निजी डेंटल कॉलेजों में बीडीएस की 241 सीटों में एडमिशन नहीं हो पाया था। इसमें रायपुर स्थित एकमात्र सरकारी डेंटल कॉलेज में 31 अक्टूबर तक सभी सीटें भर चुकी हैं। जबकि 5 निजी कॉलेजों की 500 में लगभग आधी सीटें खाली थीं। प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में डेंटिस्ट की नियुक्ति नहीं हो पाई है। जहां भी है, उन्हें संविदा में रखा गया है। एक जिला अस्पताल में केवल एक डेंटल चेयर रखा गया है, जो कभी भी खराब हो जाता है। ऐसे में लोगों के बाद निजी अस्पताल या क्लीनिक में जाने की मजबूरी होती है। सरकारी नौकरी नहीं मिलने के कारण भी छात्र डेंटल में एडमिशन लेना नहीं चाहते।
नर्सिंग की 2600 से ज्यादा सीटें खाली, ये सभी निजी कॉलेज की : इस साल बीएससी नर्सिंग की 2600 से ज्यादा सीटें खाली हैं। इन सीटों को भरने के लिए इंडियन नर्सिंग काउंसिल ने 30 नवंबर तक की तारीख बढ़ाई है। मेडिकल कॉलेज के रिटायर्ड डीन डॉ. सीके शुक्ला व सीनियर कैंसर सर्जन व मेडिकल एक्सपर्ट डॉ. युसूफ मेमन के अनुसार रोजगार की तुलना में कॉलेजों व सीटों की संख्या काफी बढ़ गई है। इसलिए छात्राएं बीएससी करने में रूचि नहीं ले रही हैं। स्किल्ड नर्सों की संख्या भी कम है। इसलिए वेतन में भी काफी अंतर रहता है। सरकारी अस्पतालों में नर्सों की 500 से ज्यादा सीटें खाली हैं, जिसे भरने की जरूरत है।
बीडीएस की सीटें पिछले कुछ सालों से खाली रह रही हैं। दरअसल छात्र थोड़ी और मेहनत कर एमबीबीएस में प्रवेश के लिए दोबारा नीट की तैयारी करते हैं। सरकारी कॉलेज की सीटें भर जाती हैं।