छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह हर का सामना करना पड़ा है. जनता ने यहां भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया है. अब लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस क्यों हारी. ऐसे क्या कारण रहे जिसके चलते प्रदेश में भाजपा फिर से सत्ता पर काबिज हो गई. आइए समझते हैं ऐसी कौन से फैक्टर रहे उनके कारण छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में यह नतीजे आए.
90 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य की राजनीति को समझना इतना आसान नहीं है जितना विश्लेषक समझते हैं. बाकी राज्यों की तरह यहां पर चुनावी मुद्दे और फैक्टर सामने दिखाई नहीं पड़ते. बल्कि यह अंडर करंट की तरह काम करते हैं. इसे आप ने में हर बार राजनीतिक विश्लेषक गलती कर देते हैं. यही कारण है कि चुनावी पंडित छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनवा रहे थे. हम उन मुद्दों और फैक्टर को विस्तार से समझेंगे जिनके कारण प्रदेश से कांग्रेस की सत्ता गई.
समीकरण नहीं समझ पाई कांग्रेस
.कांग्रेस छत्तीसगढ़ में चुनाव की राजनीति बनाने में पूरी तरह विफल रही. छत्तीसगढ़ के समीकरणों को कांग्रेस सही से समझ नहीं पाई. छत्तीसगढ़ तीन हिस्सों में विभाजित है. उत्तर दक्षिण और मध्य छत्तीसगढ़. उत्तर और दक्षिण छत्तीसगढ़ हमेशा एक तरफा ही वोट करता है. वही मध्य छत्तीसगढ़ में स्विंग सीट हैं हैं. हर 5 साल में ये सीट कांग्रेस और बीजेपी के बीच स्विंग होती है. प्रदेश में 2018 में 68 सीट जीतने के बाद कांग्रेस इस ओवर कॉन्फिडेंस में थी कि ज्यादातर सीटों में उसके ही प्रत्याशी जीत कर आएंगे. लेकिन चुनाव के दौरान जो समीकरण बनते हैं कांग्रेस ने उसे पूरी तरह इग्नोर किया.
जनता की नहीं हो रही थी सुनवाई.
कांग्रेस के 5 साल के शासनकाल के दौरान सरकारी दफ्तरों में लोगों के छोटे-छोटे काम अटके हुए थे. अधिकारियों की मनमानियां से लोग परेशान थे. लोगों की सुनवाई नहीं हो रही थी. कांग्रेस के विधायक और मंत्रियों ने इस समस्या को ठीक करने में ध्यान दिया. लोग जब जनप्रतिनिधियों के पास अपनी समस्या लेकर जाते थे तो उसे सुनकर ठंडे बस्ते में डाल देना कांग्रेस के खिलाफ में गया.
सत्ता के अहंकार में दुबई नैया.
2018 में प्रचंड बहुमत जीतने के बाद कांग्रेस नेताओं को यह लगने लगा था कि प्रदेश में भाजपा के लिए वापसी करना मुश्किल होगा. 5 साल वे इसी धारणा में रहे कि उनके पास मुख्यमंत्री का लोकप्रिय चेहरा है और भाजपा के पास चेहरा नहीं है. जिससे कांग्रेस नेता पूरी तरह लोगों से कट से गए. लोगों में यह परसेप्शन बन गया कि सरकार में अहंकार आ गया है.
बढ़ते अपराध से परेशान थे लोग.
अपराध के बढ़ते मामलों के कारण लोगों में डर बैठ गया था. प्रदेश में चाकू बाजी की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा था. इससे लोग परेशान थे.
सनातन के अपमान पर नहीं लिया सही स्टैंड.
तमिलनाडु में दयानिधि स्टालिन ने सनातन धर्म का अपमान करने वाला बयान दिया. इसका समर्थन मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियंक खड़गे ने कर दिया. इस पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ना सही स्टैंड लिया. लोगों मन में यह परसेप्शन बन गया कि कांग्रेस पार्टी सनातन विरोधी है. जिसके कारण कांग्रेस को चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा.
नहीं लड़ा एक जुट हो कर चुनाव
2018 में कांग्रेस की जीत का मुख्य कारण यह था कि कांग्रेस ने चुनाव एकजुट होकर लड़ा था. लेकिन इस बार कांग्रेस संगठन में बिखराव नजर आया. इसके कारण चुनाव के दौरान कांग्रेस बूथ मैनेजमेंट सही से नहीं कर पाई. इसका खामयाजा पार्टी को उठाना पड़ा.
भ्रष्टाचार के आरोप, सत्ता विरोधी लहर
बीजेपी ने राज्य में अपने चुनाव प्रचार के दौरान घोटालों, भ्रष्टाचार और महादेव ऐप से संबंधित ‘हवाला मनी फंडिंग’ को लेकर भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा, उसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है।
महादेव सट्टेबाजी ऐप मामला
वहीं, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बीच महादेव सट्टेबाजी ऐप के मामले से भी कांग्रेस को नुकसान हुआ है, क्योंकि महादेव सट्टेबाजी ऐप का मामला पिछले कुछ महीनों से लगातार चर्चा में है और इस मामले में सीएम बघेल का नाम भी सामने आया। वहीं, इस मामले में भूपेश बघेल का नाम आने पर बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में अपनी रैलियों के दौरान भी महादेव बेटिंग ऐप का जिक्र करते हुए भूपेश बघेल को जमकर निशाने पर लिया। इस मामले ने चुनाव के आखिरी समय पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया।
ED की छापेमारी
छत्तीसगढ़ में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कई मामलों को लेकर प्रदेश में लगातार छापेमारी की। वहीं, ईडी की छापेमारी के चलते जनता में ये संदेश गया कि राज्य में भारी भ्रष्टाचार का माहौल है और कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में भ्रष्टाचार किया जा रहा है। इसकी वजह से प्रदेश की जनता के बीच बघेल सरकार की छवि खराब हो गई और इससे कांग्रेस को नुकसान हुआ है।