बिलासपुर। पर्यावरण विभाग के निकम्मा और नकारा अधिकारियों के कारण घुटकू और घानापार के दर्जनों किसान बर्बाद हो गए है। किसानों के खेतों में चार से पांच फीट तक कोयले का डस्ट जम गया है। सालों से किसान अपने खेत में फसल नहीं ले पा रहे है। लेकिन ये डस्ट विभाग के अधिकारियों को दिखाई नहीं देती। जबकि हर तीन महीने में वाशरी का निरीक्षण करने का दावा किया जा रहा है।
घुटकु घानापार के ग्रामीण और किसान पिछले कई कई साल से कोयले की डस्ट और भारी वाहनों की आवाजाही से परेशान है। यहां पर पारस पावर एवं कोल बेनिफिकेशन नियम कानून को ताक पर रखकर वाशरी का संचालन कर रहा है। ग्रामीणों की छाती पर रोज सैकड़ों भारी वाहनों से कोयले का परिवहन किया जा रहा है। दिन रात ग्रामीणों की सांसे अटकी रहती है। कब और कौन गाड़ी के नीचे आकर मौत के मुंह में चला जाए कहा नहीं जा सकता। कोयले से लदी भारी वाहन जब एक के बाद एक निकलती है तो बस्ती की जमीन हिलने लगती है। इसके अलावा कोयले की डस्ट से न केवल घानापार बल्कि आसपास के 11 गांव के ग्रामीण परेशान है। जिस जगह पर वाशरी चल रही है उसके आसपास के खेतों में कमर से ऊपर तक कोयले की डस्ट जम गई है। किसान पिछले 7 – 8 साल से अपने खेतों में फसल तक नहीं ले पा रहे है। विडंबना तो ये है की वाशरी का संचालक किसान को कोई मुआवजा भी नही दे रहा है। आसपास के किसान बर्बाद हो चुके है। उससे भी चिंता का विषय ये है की पर्यावरण विभाग के अधिकारी शिकायत का इंतजार कर रहे है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसी भी किसान ने अभी तक उनके पास शिकायत नहीं की है, जब शिकायत आएगी तो देखेंगे। अब सवाल ये उठ रहा है की पर्यावरण विभाग के अधिकारी कर क्या रहे है ? क्या विभाग के अधिकारियों को पारस पावर एवं कोल बेनिफिकेशन की मनमानी दिखाई नहीं देती ? क्या अधिकारी नियमित निरीक्षण नही करते ? यदि निरीक्षण करते है तो अभी तक कितने नोटिस जारी किए ? कितना जुर्माना किया ? आपको बता दे ऐसे प्लांट या परिसर की हर तीन महीने में निरीक्षण करने का प्रावधान है। पावर एवं कोल बेनिफिकेशन की मनमानी से साफ हो रहा है की पर्यावरण विभाग के अधिकारी प्रबंधन के प्रभाव में है। ये प्रभाव मसल्स पावर का है की मानी पॉवर का ये जांच का विषय हो सकता है। लेकिन विभाग के अधिकारियों पर उंगलियां उठ रही है। कोल डस्ट से कैसंर, अस्थमा, टीबी जैसे भंंयकर रोग हो रहे हैं। गंभीर रोग के शिकार लोग घुटघुटकर मरने को मजबूर होते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार को कोलवाशरी वालों से इतना ही लगाव है तो ग्रामीणो को घुट घुटकर मारने की वजाय मौत का इंंजेक्शन लगा दे। इससे बस्ती भी साफ हो जाएगी, पालंंट का विरोध भी नहीं होगा। आपको बता दे पावर एवं कोल बेनिफिकेशन अपने स्थापना के समय से ही विवादों में रहा है। ग्रामीणों के लाख विरोध के बावजूद 2016 में वाशरी खोलने की अनुमति दी गई। इसके बाद प्लांट का विस्तार भी विरोध के बाद किया गया
किसान अन्नदाता है यह सिर्फ नेताओं के भाषणों तक
किसान का वोट राजनीतिक दल जरूर बटोरते हैं
लेकिन क्या किसान ग्रामीण क्षेत्र की बदहाली शासन प्रशासन नेताओं को क्यों नहीं दिखती
किसानों की जमीन हो रही बर्बाद उपजाऊ जमीन हो रही बंजर
क्या सरकार नेता इन किसानों की जमीनों को बचाएंगे या किसान किसान दर दर भटकते रह जाएंगे
क्या ऐसी फैक्ट्री उद्योगों पर शासन प्रशासन का कोई अंकुश नहीं ऐसे उद्योगपतियों के लिए प्रशासन के पास भी कोई है बुलडोजर