छत्तीसगढ़ की राजनीति में भ्रष्टाचार कोई नई बात नही है। लेकिन इस मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय किस करवट बैठते हैं। इसे लेकर कयासों का दौर जारी है। राज्य की बीजेपी सरकार ने अपने दो महीने के कार्यकाल में कई अनुकरणीय फैसले लिये हैं। इसमें किसानों से किये गये वादों के अलावा महिलाओं के कल्याण के लिये मोदी गारंटी तो पहले ही माह में पूरी कर दी लेकिन भ्रष्टाचार के मोर्चे पर कोई सफलता अभी तक नही निभा पाई है। बताया जाता है कि बीजेपी के भीतर भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही किये जाने की मांग जोर-शोर से उठ रही है। वहीं दूसरी ओर भारी भरकम घोटालों को अंजाम देने वाले सरकारी अधिकारी जस की तस अपनी कुर्सी पर बैठे हुए हैं। ऐसे अधिकारियों का प्रभार और दफ्तर ही बदल गया है लेकिन भूपेश बघेल के प्रति उनकी निष्ठा जहां की तहां नजर आ रही है। बताते हैं कि कई प्रभावशील पदों पर हुई नियुक्ति बीजेपी संगठन को विश्वास में लेकर नहीं की गई है। इनके चहेते दागी अफसरों का दबदबा विष्णुदेव साय पर भी साफ-साफ नज़र आने लगा है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था। इस मुद्दे ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अरमानों पर पानी फेर दिया था। भूपेश गिरोह गोबर से लेकर जनता के कल्याण का दावा कर रहे थे। राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं को कतई उम्मीद नही थी कि उनकी सरकार बन जाएगी। बताते हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मतदाताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के वादों पर भरोसा कर भूपेश बघेल और कांग्रेस पार्टी की बत्ती गुल कर दी। कांग्रेस राज का भ्रष्टाचार बीजेपी शासन में मुंह बनाये खड़ा है। भूपेश बघेल और उनके खेमे में शामिल ज्यादातर अधिकारियों पर सिर्फ स्थानांतरण की गाज गिरी है। वह अपनी कुर्सी बचाने में भी कामयाब रहे हैं। बताते हैं कि दागी आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने बीजेपी शासनकाल में अपनी अच्छी खासी पैठ जमाई हुई है। इसके कारण भ्रष्ट अधिकारियों के घोटालों की जांच को लेकर ईओडब्ल्यू सुस्त बैठा है, जबकि विष्णुदेव साय सरकार में सचिवालय का संचालन करने वाले प्रभावशील अफसर दागियों के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं।