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नशे के चपेट में बिलासपुर, गली-मोहल्लों में बिक रही अवैध शराब, कोचियों को किसका संरक्षण ?

 







बिलासपुर ।नशा और अपराध चोली दामन का साथ बिलासपुर शहर मे मादक अवैध नशे का काला कारोबार खुलेआम बिक रहा अवैध नशा 

नशा कई घटनाओं को जन्म दे रहा ये नशा

प्रशासन की कार्यवाही अवैध अहाता हटाना महज दिखावा

  कौन दे रहा इनको संरक्षण जगह जगह छुटभैय्ए कर रहे अवैध अहातो से काले कारनामों का संचालन

   बढ़ती चोरी मारपीट चाकू बाजी लूटमारी गैगवार हत्या बलात्कार की घटनाएं अपराध अपराधियों को संरक्षण बढ़ता नशे का कारोबार इन सब का कारण


 कोचियों का रोजगार गरीबों और आबकारी विभाग पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। बीते छह साल पहले जब देसी और विदेशी शराब दुकानें ठेकेदारी प्रथा में संचालित होती थी, तब यह आम बात थी कि शराब कोचिया को शराब ठेकेदारों का संरक्षण मिलता था ।इससे एक सीधा सा सवाल उभर कर आता है कि मौजूदा दौर में शराब की बिक्री सरकारी कम्पनी की ओर से की जा रही है, तब की स्थिति में गांव, गली मोहल्ले में जो अवैध शराब बिक रही है। उसे बेचने वाले कोचियो को आखिर किसका संरक्षण मिला हुआ है …? जो बेधड़क शराब का कारोबार कर रहे है..!यही वजह है बीते पांच साल में बड़ी संख्या में दारू के कोचिए पकड़े भी गए है। इससे यह बात तो साफ है कि कोचिये फुटकर दुकानों से बड़ी मात्रा में शराब खरीद रहे है। या फिर ये लोग दारू की कोचियागिरी करने के लिए वेयर हाउस के गोडाउन या शराब डिसलरी में सेंधमारी कर रहे है..।

प्रदेश की सत्ता में बदलाव होते ही शराब के कोचिया के साथ ही खुले में शराब पीने वालों और अवैध चखना सेंटर के अवैध कब्जा पर कार्रवाई तेज की गई थी। फिर भी रोजगार का साधन बन चुकी दारू की कोचियागिरी कम नहीं हुई..!इसकी वजह से छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पूर्व और चुनाव के बाद शराब को लेकर सियासत में आरोप प्रत्यारोप का दौर राज्य बनने के बाद से जारी है।

दारू के कोचिया के फेर में ही शराब दुकानों का सरकारी करण हो गया। अबकारी का लेखा जोखा इतना छाया कि मामला ईडी और सरकार बदलने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू तक गया। कई जगहों पर छापे पड़े । कई गिरफ्तारियां हुई..! लेकिन इन सब कार्यवाही में दारू की कोचियागिरी कम नहीं हुई। आम आदमी को राहत नहीं मिली । महिलाओ के लिए नया सिर दर्द बन गया। आलम यह बताया जा रहा है कि कई जगहों पर गरीब शराब प्रेमी अब अपने मोहल्ले में ही कोचिये से महंगी शराब खरीद कर पी रहे है।


 


सामान्य सी बात है चाहे वह शराब घोटाला हो या फिर शराब की नीति इससे आम आदमी का कोई लेना देना नही है। वह तो चाहता है कि उसके गली, मोहल्ले, गांव की गलियों ने शराब नहीं बिके …। शराब दुकान उसके घर से दूर हो । जिनको शराब पीना है वो सस्ती पिए या मंहगी उसे कोई मतलब नहीं । बस हंगामा उसके दुवारी में नही हो..! गली मोहल्ले में दारू की कोचियागिरी बंद हो।


यही बात शराब की खरीद बिक्री और इसके संचालन का जिम्मा संभाल रही छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के पोर्टल में लिखी यह टैग लाइन कहती है कि हमारा उद्देश्य असली शराब उपलब्ध कराने के लिए अवैध शराब की बिक्री पर रोक लगाना, एमआरपी पर शराब उपलब्ध कराना है। लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई नही दे रहा है।


 


छत्तीसगढ़ उत्पाद शुल्क (संशोधन) विधेयक, 2017 को विधानसभा द्वारा मंजूरी मिलने के बाद सरकार ने शराब की अवैध बिक्री को रोकने और राजस्व प्राप्ति की सुरक्षा के लिए प्रदेश में शराब की खुदरा बिक्री अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया। इसके बाद से शासन प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से शराब की दुकानें संचलित कर रही है। एक अप्रैल को 2018 के बाद जब यह नीति लागू हुई तब से अब तक राज्य शासन की शराब नीति लागू है। पर दारू की कोचियागिरी उस वक्त भी थी…. अब भी जारी है। बिचौलियों और एजेंटों की ओर से शराब की अवैध बिक्री जोरों पर है। शासन प्रशासन की कार्यवाही खाना पूर्ति सी दिखाई देती है ।

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