Bilaspur. हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सामान्य प्रचलित आरोपों के आधार पर दहेज का प्रकरण सिद्ध नहीं होता। इस आधार पर कोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ मामले को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसा नहीं हो सकता कि हर प्रकार का उत्पीड़न या क्रूरता आईपीसी की धारा 498 ए के तहत आएगी। चीफ जस्टिस की डीबी ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा है कि आईपीसी की धारा 498 ए को लागू करने के लिए यह स्थापित किया जाना चाहिए कि पत्नी के साथ क्रूरता या उत्पीड़न, उसे मजबूर करना या खुद को शारीरिक चोट पहुंचाना, आत्महत्या करना या उत्पीड़न दहेज की मांग के कारण था।
मामला कोरबा जिले के कटघोरा का है। मनोज सिंह का विवाह 25 अप्रैल, 2001 को हुआ। उनके दो बेटे हैं। शादी के लगभग 16 साल बाद पत्नी ने कटघोरा थाने में लिखिति शिकायत कर ससुराल वालों पर क्रूरता का आरोप लगाया गया। पुलिस ने मामले में पति, सास और ससुर के खिलाफ धारा 498 ए और 323/34 के तहत अपराध दर्ज कर लिया। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (जेएमएफसी), कटघोरा के समक्ष आरोप पत्र भी पेश किया गया।
इस एफआईआर को रद्द करने के लिए मनोज सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें कहा गया है कि पूरे आरोपपत्र में किसी विशेष महीने, तारीख या समय का उल्लेख नहीं किया गया है। एफआईआर और केस डायरी बयान में सर्वव्यापी और अस्पष्ट आरोप लगाए गए हैं, जो कि आईपीसी की धारा 498 ए और 323/34 के तहत अपराध नहीं बनता। याचिका में कहा गया कि शिकायत में लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं, क्योंकि शिकायत में प्रत्येक आरोपी द्वारा किए गए अपराध का विवरण और अपराध करने में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका को बताना आवश्यक है।
मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता ने तारीख और स्थान के बारे में पूरी जानकारी दिए बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रचलित और सामान्य आरोप लगाए हैं। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि ससुराल पक्ष के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता