बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक मामले में तलाक के आदेश को खारिज कर फैमिली कोर्ट को पुनः प्रक्रिया करते हुए दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला देने के निर्देश दिए हैं। प्रकरण में दिलचस्प यह है कि मात्र 33 दिन में फैमिली कोर्ट के जज ने पति के पक्ष में तलाक की डिक्री दे दी।
मामले में नियमानुसार रजिस्टर्ड नोटिस के बाद साधारण नोटिस (मचकुरी के माध्यम से घर जाकर) भी देना था। लेकिन सिर्फ रजिस्टर्ड नोटिस जारी कर उसकी तामीली ना होने के आधार पर तलाक का एकतरफा आदेश दे दिया। पत्नी को तलाक के निर्णय की प्रति भी नहीं दी। तलाक के इस आदेश को पत्नी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
पारिवारिक न्यायालय, धमतरी में पति मनेंद्र कुमार साहू ने तलाक के लिए मुकदमा प्रस्तुत किया था। उसका विवाह 29 अप्रैल 2016 को करुणा साव के साथ हुआ था। अनबन की वजह से पति ने 10 जनवरी 2022 को तलाक के लिए याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता-पत्नी को नोटिस जारी किया और पत्नी के पते पर भेज दिया। लेकिन नोटिस पत्नी को नहीं मिला, जिससे वह 26 फरवरी 2022 को सुनवाई के लिए कुटुंब न्यायालय धमतरी में उपस्थित नहीं हुई। इसके बाद साधारण नोटिस भी
जारी करने का आदेश दिया गया और मामले की सुनवाई 26 मार्च 2022 तय कर दी गई। पंजीकृत डाक की इस रिपोर्ट पर कि समन वापस आ गया है, परिवार न्यायालय द्वारा एकपक्षीय कार्यवाही कर 26 मार्च 2022 को ही तलाक का आदेश पारित कर दिया गया।
पत्नी ने फैमिली कोर्ट के आदेश को दी चुनौती
कुटुंब न्यायालय के आदेश के विरुद्ध पत्नी ने वकील संतोष पांडे के माध्यम से हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की। सुनवाई के दौरान पारिवारिक न्यायालय के रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चला कि यद्यपि
अपीलकर्ता-पत्नी को पंजीकृत नोटिस जारी किया गया था, लेकिन सामान्य नोटिस तामील नहीं किया गया। कुटुंब न्यायालय ने पंजीकृत नोटिस के आधार पर ही एकपक्षीय कार्यवाही की। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई का अवसर देना उचित माना। और
अपीलकर्ता-पत्नी को फैमिली कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने और अपना पक्ष रखने के लिए निर्देशित किया।
नोटिस की तामीली वास्तविक हो
हाईकोर्ट ने कहा कि नोटिस की तामीली महज औपचारिकता नहीं है। इसे
वास्तविक और सार्थक होना चाहिए। ताकि दूसरा पक्ष भी अदालत के सामने उपस्थित होकर अपनी बात और तर्क रख सके। इसलिए दोनों पक्ष परिवार न्यायालय धमतरी के समक्ष 26 जून 2024 को उपस्थित होंगे। और उसके बाद 30 दिन की अगली अवधि के भीतर अपीलकर्ता-पत्नी अपना लिखित बयान दर्ज कराएंगे। इसके बाद पारिवारिक न्यायालय कानून के अनुसार आगे की प्रक्रिया करेगा। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील को निराकृत कर दिया।