बिलासपुर। अस्पताल में 5 बच्चों को एक इनक्यूबेटर (वार्मर) में रखने के मामले में हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव को वस्तुस्थिति जांचने के बाद रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं।
प्रकरण में हाईकोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है।
सरकारी अस्पतालों में संसाधन न होने से बच्चों की मौत के प्रकरण में सोमवार को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस पार्थ प्रतिमा साहू की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने दुर्ग जिला कलेक्टर को मामले की जांच कर शपथपत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन और वैंटिलेटर के अभाव में पांच साल में 40 हजार बच्चों की मौत की खबर पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है।डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि शासन की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सरकारी अस्पतालों में बेड और वैंटिलेटर की कमी है।
मामले में कोर्ट ने कहा है कि उल्लेखित आंकड़ों से प्रदेश शिशु मृत्यु और मातृ स्वास्थ्य की विकट स्थिति का पता चलता है। विशेषकर यह नवजात शिशुओं और माताओं की मौतों की उच्च संख्या को उजागर करता है। आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में 40,000 से अधिक बच्चे, जो 0 से 5 आयु वर्ग के हैं, जीवित नहीं रह पाए हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि इनमें से लगभग 25 हजार बच्चे जन्म के 28 दिनों तक भी जीवित नहीं रह पाए। कोर्ट ने इसे बेहद गंभीर मुद्दा मानते हुए इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता बताई है।
प्रकरण में यह जानकारी भी मिली कि वर्ष 2019 से 2023 के बीच 3,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं की मौत हुई है। प्रमुख कारणों में एनीमिया, कुपोषण और पर्याप्त देखभाल न हो पाना है। सरकारी अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर भी जरूरत से आधे ही हैं। कोर्ट ने इस स्थिति को भी चिंताजनक मानते हुए स्थिति में सुधार की जरूरत बताई है।