बिलासपुर। दुष्कर्म पीड़िता को न्याय दिलाने के संबंध में नियमों में जरूरी संशोधन किया गया है। राज्यपाल के अनुमोदन के बाद हाईकोर्ट ने इसे तत्काल प्रभाव से लागू करते हुए अधिसूचना जारी की है। जारी अधिसूचना में कहा गया है कि मेडिकल के बाद दुष्कर्म पीड़िता का बयान दर्ज होने के बाद एफआईआर और आरोप पत्र दाखिल होने तक पूरे मामले को गोपनीय रखा जाएगा। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा जारी अधिसूचना में यह स्पष्ट कहा है कि सीआरपीसी की धारा 164 ए 2005 के अधिनियम 25 के तहत जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी तय कर दी है। लिहाजा जांच अधिकारी को पीड़िता की तुरंत चिकित्सीय जांच करानी होगी व मेडिकल जांच के संबंध में संपूर्ण दस्तावेज मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना होगा।
राज्यपाल के अनुमोदन के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आदेश जारी किया है। इसमें दुष्कर्म पीडिता द्वारा घटना के संबंध में बताए जाने पर घटना की तारीख के साथ ही समय को रिकार्ड करना होगा। जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी होगी कि पीडिता को निकटतम महिला मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित कर बयान दर्ज कराए। संशोधन अधिनियम में इसके लिए समय सीमा भी तय कर दी गई है।
नियम 87 में जरूरी संशोधन करते हुए दुष्कर्म पीड़िता के बयान दर्ज कराने के संबंध में 87 ए में जरूरी दिशा निर्देश दिए गए हैं।पीड़िता को मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान के लिए उपलब्ध कराने में 24 घंटे से अधिक की देरी होती है, तो जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण देना होगा। दुष्कर्म पीड़ित का बयान दर्ज कराने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित करने में कोताही ना बरतने हिदायत दी गई है। इस अधिनियम में यह भी स्पष्ट किया गया है कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद अदालत द्वारा उचित आदेश पारित किए जाने तक किसी भी व्यक्ति को दुष्कर्म पीड़िता के सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए बयान की प्रति नहीं दी जाएगी।