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High Court : मौत के बाद आया अपराध सामने, लेकिन सिद्ध नहीं होने से दोषी को मिली सजा से मुक्ति, जानिए क्या है मामला

 




बिलासपुर। एक मामले में पीड़िता की मौत के बाद प्रशासन को उसके साथ अपराध होने की जानकारी हुई। मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने कार्रवाई कर आरोपी को सजा दिलाने का प्रयास किया। निचले कोर्ट ने 20 साल की सजा दे दी। लेकिन हाईकोर्ट में अपराध सिद्ध न हो पाने पर आरोपी युवक की सजा निरस्त कर दी गई।


बस्तर के वनांचल क्षेत्र में रहने वाली 11 वीं की एक छात्रा के पेट दर्द हुआ। उसे पहले पास के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। हालत नाजुक होने पर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। दूसरे दिन उसकी मौत हो गई। मेडिकल कॉलेज ने छात्रा की संदिग्ध मौत की सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने मर्ग कायम कर पीएम कराया। विवेचना में पुलिस के समक्ष यह बात आई कि मृतका का गांव के ही युवक सुरेश के साथ संबंध था, जिससे वह गर्भवती हो गई। 2 मई 2019 को उसने मृत शिशु को घर पर जन्म दिया। परिवार के लोगो ने सामाजिक रिवाज से मृत शिशु को दफना दिया।




प्रसव के बाद पीड़िता को पेट दर्द व खून की उल्टी होने पर अस्पताल ले जाया गया था। विवेचना में यह बात सामने आई के लड़की के युवक से संबन्ध थे, इससे वह गर्भवती हुई और गलत तरीके से गर्भपात पर मौत हो गई। लड़की के नाबालिग होने की भी जानकारी मिली। अपराध होने की बात सामने आने पर पुलिस ने शिशु के शव को कब्र से निकाल कर आरोपी का डीएनए टेस्ट कराया। टेस्ट में आरोपी के ही मृत शिशु के जैविक पिता होने की पुष्टि हुई। पुलिस ने मृतका की 5 वीं और 10 वीं की अंक सूची के आधार उसके नाबालिग होने की बात कहते हुए आरोपी को धारा 376 और पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। निचली अदालत ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट में 20 वर्ष कठोर कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई। 


सजा के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की। अपील में आरोपी ने मुख्य रुप से पीड़िता के नाबालिग नहीं होने व


सहमति से संबंध होने की बात कही। इसके साथ ही पीड़िता ने गर्भवती होने की बात भी किसी को नहीं बताई थी। ऊपर की अदालत ने शासन और अपीलकर्ता के पक्ष को सुनने के बाद निर्णय पारित करते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को निरस्त किया है। कोर्ट ने आदेश में कहा

घटना के समय कक्षा 5वीं और 10 वी की अंकसूची दी गई। जिसमें पीड़िता की जन्म तिथि 13 सितंबर 2001 अंकित है। लेकिन अभियोजन पक्ष ने स्कूल का दाखिला खारिज रजिस्टर प्रस्तुत नहीं किया। पीड़िता के पिता ने अपनी गवाही में कहा कि बेटी की उम्र उस समय 15 वर्ष थी। हालांकि जन्मतिथि के संबन्ध में वे स्पष्ट नहीं बता सके और कहा कि लड़की की जन्मतिथि उसके स्कूल के शिक्षक द्वारा दर्ज की गई थी। उन्होंने तारीख के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं दिया था ।

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