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High Court: खुद को निर्दोष साबित करने में निकल गई आधी उम्र, 26 साल बाद मिला न्याय, जानिए क्या है मामला

 






बिलासपुर। प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत स्वीकृत राशि के भुगतान के लिए रिश्वत मांगने के आरोप में फंसे बैक प्रबंधक की आधी जिंदगी खुद को निर्दोष साबित करने में निकल गई। 26 वर्ष बाद हाईकोर्ट ने प्रबंधक को निर्दोष मानते हुए जबलपुर के सीबीआई कोर्ट से सुनाई गई सजा को निरस्त किया है।


प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत जिला उद्योग केंद्र ने दामाखेड़ा सिमगा जिला दुर्ग निवासी तेजेंदर देव चावरे का ऋण स्वीकृत किया था। जनवरी- फरवरी में तेजेंदर देव ने देना बैंक दामाखेड़ा के शाखा प्रबंधक विनोदनंद झा से मुलाकात की। कथित रूप से शाखा प्रबंधक ने उससे स्वीकृत राशि 95 हजार रुपए देने 7 हजार रुपए रिश्वत की मांग की। उसने देना बैंक दामाखेड़ा जिला दुर्ग के शाखा प्रबंधक द्वारा रिश्वत मांगने की सीबीआई से शिकायत की। सीबीआई ने शिकायत की जांच उपरांत ट्रेप करने जाल बिछाया और शिकायतकर्ता को केमिकल लगे 7000 रुपए देकर प्रबंधक के पास भेजा गया। रुपए देने के बाद उसने इशारा किया।









 टीम ने छापा मार कर प्रबंधक के टेबल से शिकायतकर्ता के 7000 व एक अन्य व्यक्ति देवेंद्र कोसले द्वारा दिए गए 7000 रुपये और दोनों की प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत स्वीकृत लोन की फाइल जब्त की। प्रबंधक के खिलाफ विशेष न्यायाधीश सीबीआई जबलपुर के कोर्ट में चालान प्रस्तुत किया गया। सीबीआई जबलपुर के विशेष कोर्ट ने 15 दिसम्बर 1998 को शाखा प्रबंधक विनोदनंद झा को धारा 7 एवं धारा 13(1) (डी) के धारा 13(2) के तहत तीन वर्ष कैद और अर्थदंड की सज़ा सुनाई। प्रबंधक ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। राज्य विभाजन के बाद अपील को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भेजा गया। राज्य गठन के बाद 24 वर्ष तक मामला यहाँ लंबित रहा। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने पुराने मामलों को निराकृत करने सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था। इस पर मामले को सुनवाई के लिए लिस्ट में शामिल किया गया।





 26 वर्ष पुराने इस मामले में सीबीआई की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। अपील पर जस्टिस संजय कुमार जायसवाल के कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सुनवाई में गवाह व शिकायतकर्ता के विश्वसनीय नहीं होने पर सीबीआई अदालत



के आदेश को खारिज कर शाखा प्रबंधक को दोषमुक्त किया है।


हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान यह बात आई कि शिकायतकर्ता ने उनसे मुलाकात की थी। शाखा प्रबंधक ने योजना के तहत 95 हजार रुपए लोन स्वीकृत होने की जानकारी दी। इसके लिए बैक में खाता खोलने, दस्तावेजीकरण, मार्जिन मनी और स्टाम्प शुल्क लगने की जानकारी दी और इस पर 7000 रुपये लगने की बात कही थी। शिकायतकर्ता ने उक्त राशि मांगे जाने की शिकायत कर दी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान देना बैंक मुख्यालय ने भी लोन के लिए प्रोसेसिंग शुल्क 6900 रुपये नियमानुसार लगने की पुष्टि की। शिकायकर्ता ने शुल्क की राशि ही बैंक प्रबंधक को दी और खाता खोलने के लिए फ़ोटो लाने की बात कह कर निकला था। उसे जिला उद्योग केंद्र के नाम पत्र भी दिया गया था।








मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में उच्चतम न्यायालय के न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किए गए। सुको ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में सुनवाई के दौरान अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतने की सलाह दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रावधान के तहत न होने या गलत प्रकरण होने पर व्यक्ति पर सामाजिक कलंक लगता है।

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