Bilaspur. प्राचीन भारतीय ऋषियों ने मानव स्वास्थ्य को सर्वोपरि रखते हुए, जीवन को स्वस्थ रखने के लिए विशिष्ठ चिकित्सा पद्धति तैयार की जिसे पंचकर्म थेरेपी (Panchakarma Therapy) के नाम से जाना जाता है। चरक संहिता सूत्र 30/26 में कहा गया है- स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं। अर्थात आयुर्वेद शास्त्र का उद्देश्य एक स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ रखना और किसी व्यक्ति में होने वाली बीमारियों (मन, शरीर या दोनों) को ठीक करना है।
पंचकर्म पद्धति (Panchakarma Therapy) आयुर्वेद चिकित्सा की सबसे पुरानी पद्धतियों में से एक है। पंचकर्म पद्धति का सबसे ज्यादा उपयोग दक्षिण भारत में देखने को मिलता है। पंचकर्म अर्थात पांच प्रकार की ऐसी चिकित्सा जिसमें शरीर के दोष (विषाक्त पदार्थों) बाहर निकाले जाते है। पंचकर्म एक डिटॉक्स प्रक्रिया है।
अधिकांश लोगों के मन में आयुर्वेद (Ayurveda) को लेकर यह सवाल उठता है कि यह बहुत पुराना विज्ञान है और इसकी दवाएं काफी कड़वी होती है। तथा इलका इलाज लम्बी अवधि तक चलता है। इसके अलावा आयर्वेद के इलाज से धीरे-धीरे आराम लगता है। जबकि ये धारणा बिल्कुल गलत है। यह चिकित्सा विज्ञान बहुत पुराना है परंतु इसकी चिकित्सा बहुत ही कारगर है।
अरपा पुल स्तिथ वैधशाला के संचालक डॉक्टर मनोज चौकसे ने न्यूज़ इंडिया से बातचीत में बताया कि अनियमित दिनचर्या और खानपान में लापरवाही के कारण कम उम्र में ही कई लोगों तनाव और कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं। इसके बढ़ते प्रदूषण के कारण शरीर में कई तरह की अशुद्धियां भी जमा होती रहती है. Panchakarma से इन सभी अशुद्धियों को शरीर से बाहर निकाला जाता है.पंचकर्म होने के बाद शरीर में क्षरण के प्रक्रिया काफी धीमी हो जाती है. आयुर्वेद के अनुसार पंचकर्म में शरीर के साथ-साथ मन की भी शुद्धि होती है.