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High Court Breaking : पॉक्सो एक्ट के मामलों में कड़ाई जरूरी, हाईकोर्ट ने 20 साल की सजा बरकरार रखी

 



बिलासपुर। मानसिक रूप से कमजोर 16 वर्षीय लड़की के यौन उत्पीड़न के दोषी 

के 20 साल के कठोर कारावास को हाईकोर्ट ने उचित ठहराया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को जारी रखते हुए दोषी द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि- बच्चों के यौन उत्पीड़न के किसी भी कृत्य को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे सभी अपराधों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।





 घटना 16 अगस्त, 2021 को रायगढ़ जिले में हुई। पीड़िता के पिता ने शिकायत दर्ज कराई कि आरोपी आशीष सेंदरिया उर्फ भुंडू ने उसकी मानसिक रूप से कमजोर बेटी को बहला-फुसलाकर अपने घर बुलाया और उसके साथ बलात्कार किया। जांच के बाद, भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (जे) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत आरोप दायर किए गए। हाईकोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर देते हुए ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा। 







कोर्ट ने कहा कि अगर पीड़िता की गवाही विश्वसनीय पाई जाती है तो केवल उसके आधार पर ही सजा दी जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश सिन्हा ने कहा, “अगर न्यायालय ऐसे सबूतों को विश्वसनीय और संदेह से मुक्त मानता है, तो उनकी पुष्टि करने पर शायद ही कोई जोर दिया जाए”। कोर्ट ने बाल शोषण के लिए कठोर दंड प्रदान करने के लिए अधिनियम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला देते न्यायालय ने कहा, “जब दंडात्मक प्रावधान में ‘इससे कम नहीं होगा…’ वाक्यांश का प्रयोग किया जाता है, तो न्यायालय धारा का उल्लंघन नहीं कर सकते, और कम सजा नहीं दे सकते।” 




  न्यायालय ने पीड़ित बच्चों पर ऐसे अपराधों के दीर्घकालिक प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा,“पीड़ित बच्चे के मन पर इस घृणित कृत्य का प्रभाव आजीवन रहेगा। इसका प्रभाव पीड़ित के स्वस्थ विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है।” निर्णय में दृढ़ता से कहा गया कि पॉक्सो मामलों में कोई नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए। न्यायालय ने दोषसिद्धि को बरकरार रखने से पहले पीड़ित की गवाही, चिकित्सा साक्ष्य और एफएसएल रिपोर्ट पर सावधानीपूर्वक विचार किया।

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