बिलासपुर। नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत जांच में हाईकोर्ट ने प्रक्रिया के पालन पर जोर दिया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि “सीसीटीवी फुटेज, कॉल रिकॉर्ड (विवरण) और आरोपी से बरामद मोबाइल फोन के सिम विवरण का संग्रह न करना मात्र दोषपूर्ण जांच के उदाहरण नहीं हैं बल्कि सर्वोत्तम और महत्वपूर्ण साक्ष्यों को रोकने के बराबर हैं।”
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने विभागीय जांच में बहुत सी प्रक्रियात्मक कमियां पाते हुए दोषी ठहराए गए चार व्यक्तियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने जांच और परीक्षण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक चूकों को अपने फैसले में उजागर किया है।
यह है मामला
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने 13 सितंबर, 2018 को रायपुर में एक ट्रक से कथित तौर पर 1,840 किलोग्राम गांजा (भांग) जब्त किया था। चार व्यक्तियों चंद्रशेखर शिवहरे, शिवशंकर गुप्ता, बुद्धू कृष्णानी, और बलदेव प्रसाद गुप्ता को गिरफ्तार किया गया। विशेष न्यायाधीश (एनडीपीएस अधिनियम), रायपुर द्वारा 3 मार्च, 2023 को दोषी ठहराते हुए उन्हें 20 साल का कठोर कारावास और प्रत्येक पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। दोषी व्यक्तियों ने हाईकोर्ट के समक्ष अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए अलग-अलग अपीलें हाईकोर्ट में दायर कीं।
हाईकोर्ट ने पाया- साक्ष्य जुटाने में की गई लापरवाही
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मामले में कई महत्वपूर्ण खामियों की पहचान की।
न्यायालय ने पाया कि साक्ष्य अधिनियम के अनुसार बयान एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के बजाय एक उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की उपस्थिति में लिए गए थे। नमूना प्रक्रिया स्टैंडिंग ऑर्डर 1/88 और 1/89 के अनुरूप नहीं थी, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार कानून की बाध्यकारी शक्ति माना जाता है। अभियोजन पक्ष इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, जिसमें सीसीटीवी फुटेज और कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) शामिल हैं, के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी के तहत प्रमाण पत्र प्रदान करने में विफल रहा। कोर्ट ने गवाहों के बयानों में भी महत्वपूर्ण विरोधाभास देखे, जिसमें स्वतंत्र गवाह भी शामिल थे जो बाद में बयान से पलट गए थे। इन निष्कर्षों के आधार पर, हाईकोर्ट ने सभी तीनों अपीलों को स्वीकृत कर निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर अभियुक्तों को सभी आरोपों से बरी कर दिया।