बिलासपुर। हाईकोर्ट ने पुलिस में दर्ज एक प्राथमिकी (एफआईआर) को खारिज कर दिया है। प्रकरण की सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दुर्भावनापूर्ण आरोप के माध्यम से व्यक्तियों को परेशान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
मामला सरगुजा के विश्रामपुर के एसईसीएल कॉलोनी निवासी मुनमुन सिंह का है, जिन्होंने अपने विरुद्ध दर्ज एफआईआर को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनके खिलाफ रोजगार प्राप्त करने में कथित धोखाधड़ी और शैक्षिक अभिलेखों में हेराफेरी करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। एफआईआर पारिवारिक संपत्ति के विवाद में मुनमुन सिंह की चाची चंद्रकांति देवी ने दर्ज कराई थी।
मुनमुन सिंह को उनके चाचा लालगोविंद सिंह ने गोद लिया था, जो एसईसीएल विश्रामपुर में कार्यरत थे। स्कूल सहित अन्य सभी दस्तावेज में मुनमुन के पिता के तौर पर लालगोविंद का नाम दर्ज है। लालगोविंद के मेडिकल अनफिट होने के बाद साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) द्वारा उनको सर्विस से इस शर्त पर अवकाश दिया गया था के वे अपने एक आश्रित को सर्विस में रखवा सकते हैं।लालगोविंद सिंह के आवेदन पर इस पद पर मुनमुन की नियुक्ति सामान्य मजदूर श्रेणी-1पर एसईसीएल ने दी। अपने कार्य प्रदर्शन के आधार पर मुनमुन को सहायक फोरमैन, ग्रेड-3 के पद पर वर्ष 2003 में पदोन्नत भी किया गया। 2018 में लालगोविंद की मृत्यु के बाद, पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद पैदा हो गया। इस कारण याचिकाकर्ता की एक अन्य चाची चंद्रकांति देवी और उनके पति गोविंद सिंह ने मुनमुन के रोजगार और शैक्षिक रिकॉर्ड में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए कई शिकायतें दर्ज कराईं। इस आधार पर आरोपी मुनमुन के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर ली गई।
आरोपी मुनमुन ने अपने विरुद्ध धोखाधड़ी और अन्य मामलों में दर्ज की गई एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने याचिका को स्वीकार कर लिया और एफआईआर और इस संबन्ध में निचले कोर्ट के आदेश दोनों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि एफआईआर गलत आधार पर दुर्भावना पूर्वक दर्ज कराई गई थी। कोर्ट ने कहा कि “इस मामले में यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है कि जब पति न्यायालय से राहत पाने में विफल रहा, तो उसने अपनी पत्नी को याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए सामने कर दिया। जिसने अपने पति के निर्देश पर काम किया।