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High court : सिटी मजिस्ट्रेट ने की गलत कार्रवाई, हाईकोर्ट ने 25 हजार रुपए लगाया जुर्माना,



बिलासपुर। पति-पत्नी के विवाद में गलत कार्रवाई करते हुए सिटी मजिस्ट्रेट ने पति को अवैध हिरासत में जेल भेज दिया। पीड़ित की याचिका पर हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट सहित संबंधितों को फटकार लगाई है। साथ ही शासन पर 25 हजार का जुर्माना कर 30 दिन में याचिकाकर्ता को क्षतिपूर्ति के रूप में जमा करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने इसे एक नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन कहा है। 




कोरबा के एमपी नगर थाना सिविल लाइन रामपुर निवासी बाल्कोकर्मी लक्ष्मण साकेत ने अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें बताया कि सिटी मजिस्ट्रेट गौतम सिंह (एडिशनल कलेक्टर) ने लक्ष्मण और पत्नी के बीच विवाद पर धारा 107, 116 के तहत प्रस्तुत पुलिस इश्तगाशा पर कार्यवाही की। अधिवक्ता ने जमानत आवेदन प्रस्तुत किया तो जमानत दे दी। पर जब न्यायालय से छोडऩे का समय आया तो शाम पांच बजे सॉल्वेंट श्योरिटी की शर्त लगा दी गई। शाम हो जाने के कारण लक्ष्मण की ओर से सॉल्वेंट श्योरिटी प्रस्तुत नहीं की जा सकी। इसके बाद लक्ष्मण को गलत तरीके से जेल भेज दिया गया।








हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि यहां सिटी मजिस्ट्रेट को सॉल्वेंट श्योरिटी मांगने का अधिकार ही नहीं था। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य शासन को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने टिप्पणी भी की है कि इस प्रकरण में एक नागरिक के जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन किया गया है। कोर्ट ने कोरबा कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, सिटी मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक समेत सभी संबंधितों को दोषी पाते हुए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।

सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों और कानून के प्रावधानों का भी उल्लेख किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल संदेह के आधार पर, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। जिसके खिलाफ गंभीर या गैर-जमानती अपराध नहीं है, उसे न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जा सकता। ऐसे मामले को जमानती मानते हुए सीआरपीसी की धारा 436 के तहत शक्ति का प्रयोग करके जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किया गया था, उसे संबंधित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया और वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।

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