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High Court : कॉलेज प्रबंधन ने लगातार किया परेशान, आखिर 27 साल बाद मिला न्याय

 



बिलासपुर। तीन दशक से भी अधिक समय बाद एक याचिकाकर्ता को न्याय मिला है।हाईकोर्ट ने इंजीनियरिंग कॉलेज में टायपिस्ट की नौकरी पर वापस रखने का निर्देश दिया है। 




 याचिकाकर्ता धनीराम साहू की नियुक्ति हमाल के पद पर शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज कोनी में 1988 में हुई थी। वर्ष 1990 में हमाल के पद पर नियमितीकरण भी हो गया। लेकिन महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा वर्ष 1997 में चुतर्थ वर्ग कर्मचारी के पद भरने के लिए सूचना और विज्ञापन निकाला। याचिकाकर्ता ने हिन्दी एवं अंग्रेजी माध्यम से टायपिस्ट परीक्षा पास की थी। इस हेतु योग्य आवेदक होने पर अपना आवेदन प्रस्तुत किया। इसमें भर्ती समिति द्वारा परीक्षा आयोजन कर इंटरव्यू लेने के पश्चात् याचिकाकर्ता का नाम मेरिट में प्रथम होने पर स्टेनो टायपिस्ट पद हेतु चयन किया गया। याचिकाकर्ता को वर्ष 1997 में इस पद पर नियुक्ति दे दी गई। लेकिन 22 जुलाई 1999 को नियुक्ति को गलत मानते हुए पुनः याचिकाकर्ता को हमाल के पद पर डिमोट कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। 







कोर्ट वर्ष 2014 में प्रकरण स्वीकार करते हुए 10 दिवस के अन्दर पुनः पद पर रखने का निदेश दिया। न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करने पर अवमानना प्रकरण भी चला। फिर भी आदेश का पालन नहीं होने पर पुनः याचिका प्रस्तुत की गई। गुण-दोष के आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर याचिकाकर्ता को नियुक्ति और पिछले समस्त लाभांश तीन माह में प्रदान करने का आदेश 22 फरवरी 2023 को दिया गया। लेकिन प्राचार्य और निदेशक द्वारा हाईकोर्ट के इस आदेश का भी पालन नहीं किया गया और याचिकाकर्ता को बहुत ही ज्यादा प्रताड़‌ना शुरू कर दी गई। कई बार लगातार दिन-रात ड्यूटी करने का आदेश भी पारित किया गया। साथ ही प्रबंधन ने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच के समक्ष अपील भी कर दी गई। सुनवाई के बाद डीबी ने एकल पीठ के आदेश को सही माना और याचिकाकर्ता को टायपिस्ट के पद पर नियुक्ति देने का आदेश दिया। इसी बीच राज्य शासन ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी भी प्रस्तुत कर दी थी। इसे शीर्ष कोर्ट ने नामंजूर कर दिया। इसके बाद से हाईकोर्ट एवं उच्चतम न्यायालय के आदेशों पर याचिकाकर्ता को नियुक्ति मिली है।

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