बिलासपुर। हाईकोर्ट ने बिलासपुर के एक पेट्रोल पंप व्यवसायी पर जानलेवा हमला करने के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी। जिला न्यायालय से जमानत निरस्त होने के बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
प्रकरण के अनुसार 16 मई 2024 को राम खेड़िया अपने स्वामित्व एवं आधिपत्य की लिंक रोड स्थित भूमि पर बाउंड्री वॉल का निर्माण करवा रहे थे, तभी आदतन अपराधी मोहम्मद तारिक ने वहां आकर उनपर जानलेवा हमला कर घायल कर दिया। खेड़िया की शिकायत पर थाना सिविल लाइन ने मो. तारिक के विरुद्ध अपराध प्रकरण क्रमांक 447/24 दर्ज कर धारा 294, 506, 323, 326, 34 अंतर्गत अपराध दर्ज कर लिया। पुलिस रिमांड में लेकर सीजेएम कोर्ट में प्रकरण प्रस्तुत किया गया। कोर्ट ने मोहम्मद तारिक की जमानत अर्जी खारिज कर जेल भेज दिया। तारिक ने पुनः सत्र न्यायालय में जमानत याचिका दायर की। 16 जुलाई 2024 को सुनवाई कर सत्र न्यायाधीश ने पाया कि अभियुक्त के विरुद्ध धारा 326 का अपराध आजीवन कारावास से दंडनीय है। अपराध गंभीर प्रकृति का है, यदि इस स्तर पर अभियुक्त को जमानत का लाभ दिया जाता है तो साक्षियों को प्रभावित करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन परिस्थितियों में अभियुक्त को जमानत का लाभ दिया जाना न्यायोचित नहीं होगा फलस्वरूप जमानत अर्जी खारिज कर दी गई। इस पर तारिक ने हाईकोर्ट में जमानत अर्जी दायर की।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के कोर्ट में आवेदक के अधिवक्ता ने कहा कि आवेदक निर्दोष है और उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि 16 जून 2024 को आवेदक और उसकी पत्नी दुकान में बैठे थे इसी बीच शिकायतकर्ता और अन्य आरोपी आवेदक की दुकान में आए और दुकान खाली करने कहकर आवेदक से गाली-गलौज और मारपीट भी की।
आवेदक की पत्नी ने तुरंत थाने में शिकायत की लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। बाद में शिकायतकर्ता ने आवेदक और उसकी पत्नी के खिलाफ पुलिस थाने में झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई। सरकारी वकील ने जमानत आवेदन का विरोध करते कहा कि आवेदक ने घायल की छाती पर सब्बल से चोट पहुंचाई है। शरीर पर चोट और कटने का घाव है और एक्स-रे रिपोर्ट के अनुसार घायल की छाती पर रैखिक फ्रैक्चर पाया गया है। इसके अलावा, उस पर पहले से पां
च आपराधिक मामले हैं। दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह न्यायालय आशा और विश्वास करता है कि यदि कोई कानूनी बाधा नहीं है, तो ट्रायल कोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से 6 महीने के भीतर ट्रायल समाप्त करने का गंभीर प्रयास करेगा।