बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक मामले में आदेश दिया है कि नगर निगम के कर्मचारी का नगर पंचायत में तबादला करने का अधिकार राज्य शासन को नहीं है। अधिनियम के अनुसार शर्तों के अधीन सिर्फ प्रतिनियुक्ति की जा सकती है। इस आधार पर निगमकर्मी के तबादले पर कोर्ट ने रोक लगा दी।
नगर पालिक निगम दुर्ग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर कार्यरत भूपेन्द्र गोईर के स्थानान्तरण का आदेश राज्य शासन ने 21 अगस्त 2024 को जारी किया था। इस आदेश के अनुसार भूपेन्द्र गोईर का स्थानांतरण नगर निगम दुर्ग से नगर पंचायत देवकर कर दिया। भूपेन्द्र ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से इस स्थानांतरण को हाईकोर्ट में चुनौती दी। मामले की सुनवाई जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की सिंगल बेंच में 30 अगस्त को हुई। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार को नगर पालिक निगम के अधिकारी- कर्मचारियों की सेवाओं को नगर पंचायत में स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य शासन द्वारा 21 अगस्त 2024 को जारी तबादला आदेश पर स्थगन लगाते हुए राज्य शासन को जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर तर्क दिया गया कि वह मूल रूप से नगर निगम का कर्मचारी है। ऐसे में उनकी सेवाएं नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 58 के अनुसार नगर निगम के नियंत्रण में ही ली जा सकती है। इस अधिनियम के अनुसार उनका स्थानांतरण नगर पंचायत में करने का कोई भी प्रावधान नहीं है। याचिका में बताया गया कि नगर निगम के कर्मचारियों को नगर पंचायत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को उचित माना।
हाईकोर्ट ने माना कि नगर निगम का गठन नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 के तहत होता है। जबकि नगर पंचायत नगर पालिका अधिनियम 1961 के तहत गठित संस्था है। दोनों संस्थाओं के कर्मचारियों के सेवा नियम भी अलग-अलग हैं। नगर निगम अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो राज्य सरकार को नगर निगम के कर्मचारियों का स्थानांतरण नगर पंचायत में करने का अधिकार देता हो। नगर निगम अधिनियम की धारा 58 में भले ही कर्मचारी को एक नगर निगम से दूसरे नगर निगम में प्रतिनियुक्ति की शर्तों पर भेजने का प्रावधान है। लेकिन, नगर निगम के कर्मचारी का नगर पंचायत में तबादला करने का अधिकार राज्य शासन को नहीं है।