बिलासपुर। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी शासकीय कर्मचारी से सेवाकाल के दौरान लिखित सहमति प्राप्त की गई है, फिर भी उसके वेतन से किसी भी तरह वसूली नहीं की जा सकती। क्योंकि छत्तीसगढ़ वेतन पुनरीक्षण नियम 2009 एवं 2017 में यह प्रावधान नही किया गया है। इसके साथ ही कोर्ट ने वसूली आदेश निरस्त कर दिया।
एस. मनोहरदास, 8वीं बटालियन, छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, पुलिस विभाग राजनांदगांव में कंपनी कमाण्डर के पद पर पदस्थ थे। पदस्थापना के दौरान सेनानी, 8वीं वाहिनी, राजनांदगांव ने उनको सेवाकाल के दौरान 1 जनवरी 2006 से 1 जुलाई 2018 तक त्रुटिपूर्ण ढंग से अधिक वेतन भुगतान का हवाला देते हुए वसूली आदेश जारी किया। उनके वेतन से वसूली प्रारंभ कर दी गई। कम्पनी कमांडर ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं दुर्गा मेहर के माध्यम से इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट बिलासपुर की डिवीजन बेंच ने भी में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि किसी भी तृतीय श्रेणी कर्मचारी से पूर्व के वर्षों में अधिक भुगतान का हवाला देकर उनके वेतन से किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती है। यदि किसी शासकीय कर्मचारी से सेवाकाल के दौरान लिखित सहमति प्राप्त की गई है, फिर भी उसके वेतन से किसी भी तरह वसूली नहीं की जा सकती। सुनवाई के पश्चात् याचिका स्वीकार कर कोर्ट ने वसूली आदेश को निरस्त कर दिया। विभाग को यह निर्देशित किया कि याचिकाकर्ता से वसूल की गई राशि तत्काल वापस करें।