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High Court : चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बेंच ने गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में बाघ की मौत पर जताई नाराजगी

 




बिलासपुर। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बेंच ने गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में बाघ की मौत पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने वन विभाग के आला अधिकारियों से जवाब तलब कर टिप्पणी की है कि वन्य जीव नष्ट हो रहे हैं, पर्यावरण भी नष्ट हो रहे हैं, अब बचा क्या?वन्य जीव नहीं बचा पाएंगे जंगल नहीं बचेगा तो कैसे चलेगा।.छत्तीसगढ़ में कम से कम यही सब है। डिवीजन बेंच ने मामले में प्रधान मुख्य वन संरक्षक को 10 दिन के अंदर व्यक्तिगत शपथपत्र पर जवाब मांगा है और पूछा है कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 21 नवंबर को होगी।।

कोर्ट में वन्य जीव के संरक्षण को लेकर याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई, जिसमें प्रदेश में हुई बाघ की मौत को हाईकोर्ट ने जनहित याचिका माना है। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और एके प्रसाद की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। इस दौरान वन्यजीवों के मौत को लेक चीफ जस्टिसJ ने अहम टिप्पणी की, जिसमें कोर्ट ने वन्यजीवों की मौत और पर्यावरण की अनदेखी पर सख्त नाराजगी जाहिर की।- छत्तीसगढ़ में दूसरी मौत

कोर्ट ने बाघ को मौत को लेकर भी टिप्पणी की और कहा यह दूसरी मौत है, टाइगर हिंदुस्तान में जल्दी मिलता नहीं, यहां है तो संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं।जिसके जवाब में महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत में कहा कि मामले में कड़ी कार्रवाई की जा रही है। बाघ की मौत के बाद वन अफसर भी हरकत में आ गए हैं। वन विभाग के अफसर घटनास्थल पहुंचकर दो किलोमीटर के दायरे में रह रहे लोगों से पूछताछ करने में जुटे हैं। दरअसल, बीते 8 नवंबर 2024 को सरगुजा के कोरिया वन मंडल के पास खनखोपड़ नाला के किनारे बाघ का शव मिला। जिसे वन विभाग ने आधिकारिक तौर पर जहर खुरानी की घटना बताया है। जिसकी जांच जारी है।

डिवीजन बेंच ने शपथपत्र में मांगा जवाब

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने शपथ पत्र के माध्यम से कार्रवाई के बारे में पूछा, जिस पर शासन का पक्ष महाधिवक्ता ने रखा। जिस पर मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा की डबल बेंच ने सरकार की तरफ से PCCF को नोटिस कर व्यक्तिगत शपथपत्र के माध्यम से जवाब मांगा है। जिसमें पूछा है वन्यजीवों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। अगली सुनवाई 21 नवंबर को रखी गई है।


याचिका में यह है आरोप


छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में हाल ही में एक बाघ की मौत के मामले को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हो रही है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति प्रशासन की लापरवाही और बाघों के संरक्षण में गंभीर खामियां हैं, जिसके कारण यह घटना हुई। याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से बाघों के सुरक्षा प्रबंधों और उनके प्राकृतिक आवास के संरक्षण पर सवाल उठाए हैं।


मामला तब सामने आया जब राज्य के एक संरक्षित वन क्षेत्र में एक बाघ की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। वन विभाग के अनुसार, बाघ की मौत का कारण निर्धारित करने के लिए शव का पोस्टमार्टम किया गया, लेकिन अभी तक विस्तृत रिपोर्ट नहीं आई है। याचिका में कहा गया है कि यह घटना वन्यजीवों के लिए उपयुक्त सुरक्षा प्रबंधों की कमी को दर्शाती है। यह भी आरोप लगाया गया है कि वन विभाग के अधिकारियों द्वारा समय पर निगरानी और सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति से इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं।


याचिका में मांग की गई है कि राज्य सरकार बाघों की सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण के उपायों को सुदृढ़ करे। इसमें खासकर जंगलों में गश्त बढ़ाने, कैमरा ट्रैप और ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर बाघों और अन्य वन्यजीवों पर निगरानी रखने के उपाय शामिल हैं। याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार से यह भी अनुरोध किया है कि वन्यजीवों की सुरक्षा में ढिलाई बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।


सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया और राज्य सरकार से जवाब तलब किया। कोर्ट ने पूछा कि राज्य में वन्यजीवों, खासकर बाघों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और किन उपायों के माध्यम से इनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बाघों की मौत के कारणों की निष्पक्ष जांच की जाए और इस मामले में दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

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