बिलासपुर। हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी वकील की राय ने किसी व्यक्ति या संस्था को वित्तीय नुकसान पहुंचाया, तो सिर्फ इसी आधार पर उसके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि इस बात के प्रमाण होने चाहिए कि उक्त कृत्य संस्था को धोखा देने के इरादे से किया गया और इसमें अन्य साजिशकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी थी।
डिवीजन बेंच ने वकील रामकिंकर सिंह नामक की याचिका को स्वीकार करते हुए उक्त टिप्पणी की। वकील ने याचिका में अपने खिलाफ आरोपपत्र और एफआईआर सहित पूरी आपराधिक कार्रवाई को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता वकील के खिलाफ बेमेतरा में भारतीय स्टेट बैंक के पैनल वकील के रूप में उनकी भूमिका के आधार पर एफआईआर कराई गई। याचिकाकर्ता ने उधारकर्ता द्वारा गिरवी रखी गई कृषि भूमि के लिए गैर-भार प्रमाण पत्र जारी किया,जिसका उपयोग बाद में 3 लाख रुपये के किसान क्रेडिट कार्ड लोन को सुरक्षित करने के लिए किया गया। बाद में उधारकर्ता लोन चुकाने में विफल रहा और जांच से पता चला कि भूमि के दस्तावेज, जिसके आधार पर लोन दिया गया था फर्जी थे। अगस्त 2018 में एसबीआई के शाखा प्रबंधक ने धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने याचिकाकर्ता को भी इस आधार पर आरोपी बनाया गया कि उसने फर्जी दस्तावेजों को प्रमाणित किया था।
इससे पहले याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दायर करके अपने खिलाफ आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी, जिसे बिना किसी कारण के खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए तर्क दिया कि किसी वकील के खिलाफ दायित्व तभी बनता है, जब वकील बैंक को धोखा देने की योजना में सक्रिय भागीदार हो। हालांकि सरकार की ओर से डिप्टी एजी के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। क्योंकि यह स्पष्ट हो रहा है कि याचिकाकर्ता ने सह-आरोपी, उधारकर्ता द्वारा गिरवी रखी गई भूमि की झूठी तलाशी रिपोर्ट तैयार की थी। यह भी तर्क दिया गया कि जांच पूरी तरह से कानून के अनुसार की गई, जिसमें गवाहों के बयान दर्ज किए गए। सबूत और दस्तावेज प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध का खुलासा करते हैं। बैंक के वकील ने भी डिप्टी एडवोकेट जनरल द्वारा दिए गए तर्कों का समर्थन किया।