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39 सालों में पहली बार...जब बिना मतदान चुना गया बिलासपुर का मेयर, शहर में बन गया था चर्चा का विषय

 




Bilaspur. 2019 में हुए नगरीय निकाय चुनाव अपने आप में अनूठे थे.इसका कारण था कि वर्ष 2018 में प्रदेश में 15 साल राज करने के बाद के बाद बीजेपी सत्ता से बहार हुई थी. कांग्रेस की नई सरकार ने नियमों में बड़े बदलाव कीए थे. इस बार मेयर जनता नहीं बल्कि पार्षद चुनने वाले थे. संख्याबल से निर्धारित होना था कि मेयर कौन होगा ? इसके अलावा बिलासपुर में हमेशा अजय रहने वाली बीजेपी विधानसभा चुनाव में ये सीट हार चुकी थी.



 लेकिन इसमें बावजूद भाजपा के 32 पार्षद चुन कर आए और कांग्रेस के 38 पार्षद विजयी हुए. विधानसभा चुनाव में जैसे नतीजे आए थे उसके लिहाज ये प्रदर्शन भाजपा के लिए संतोषजनक था. लेकिन उसके बाद भी जब मेयर और सभापति के लिए चुनाव हुए, तब बीजेपी पार्षदों ने सरेंडर कर दिया. इससे बिलासपुर की बीजेपी राजनीति में एक ठहराव सा आ गया था. रामशरण यादव और शेख नजरुद्दीन बिना विरोध, बिना चुनाव के मेयर और सभापति बन गए थे. बीजेपी का हथियार डालना एक चौंकाने वाला कदम था .प्रदेश के गठन के बाद से ये पहला मौका था जब बिना किसी मतदान मेयर का चुनाव  हुआ था.




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