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Breaking : एसबीआर कॉलेज की पूरी जमीन को शासन के नाम पर दर्ज कराने का आदेश दिया हाईकोर्ट ने, सभी 11 रजिस्ट्री निरस्त

 







बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एसबीआर कॉलेज के खेल मैदान की 2.38 एकड़ जमीन को शासन का ही माना है। डिवीजन बेंच ने इस जमीन की हुई सभी 11 रजिस्ट्रियों को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने शासन को निर्देश दिया है कि कानूनी प्रक्रिया के तहत इस पूरी जमीन को शासन के नाम पर दर्ज कराया जाए। कोर्ट ने शासन और याचिकाकर्ताओं की इस अपील को भी स्वीकार किया कि 1995-96 में यह जमीन शासन के अधीन हो गई थी लेकिन किन्हीं कारणों से उसका नामांतरण नहीं हो पाया था।



शासन की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत ने पक्ष रखा। जबकि याचिकाकर्ता अतुल बजाज, अमित बजाज, सुमित बजाज, संतोष बजाज की ओर से एडवोकेट अनुराग दयाल श्रीवास्तव ने पैरवी की। उल्लेखनीय है कि एसबीआर कालेज की पूरी जमीन शिव भगवान रामेश्वर लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वामित्व की है। यह ट्रस्ट की पारिवारिक जमीन है और बजाज परिवार ने साल 1944 में ट्रस्ट का गठन कर 10 एकड़ जमीन दान में दी थी। इसमें इस ट्रस्ट ने इलाके में बेहतर उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए कॉलेज खोला। वित्तीय और पारिवारिक स्थितियों के बीच यह कॉलेज 1975 में सरकार को दे दिया गया। इसमें कॉलेज भवन और करीब आठ एकड़ जमीन सरकार को सौंपी गई। वहीं ट्रस्ट के स्वामित्व में कॉलेज के सामने मौजूद 2.38 एकड़ जमीन है, जिसका उपयोग खेल के मैदान के रूप में किया जा रहा है। इसी जमीन के स्वामित्व को लेकर पारिवारिक विवाद चल रहा है। जिस पर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने ट्रस्टियों के पक्ष में फैसला दिया था। सिंगल बेंच ने जमीन को ट्रस्ट के स्वामित्व का माना था और साथ ही कलेक्टर को आदेशित किया था कि नियमों के अनुसार जमीन नीलामी के माध्यम से बेचकर ट्रस्ट के मालिकों को जमीन की बिक्री रकम दी जाए। ट्रस्टियों ने कलेक्टर से अनुमति लेकर नियमानुसार जमीन का ऑक्शन कराने के बाद रजिस्ट्री भी करा दी है। जबकि, परिवार के दूसरे सदस्यों को ट्रस्ट से हटा दिया गया। इसमें अतुल बजाज ने सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की। इस केस की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि परिवार के सदस्य और कुछ ट्रस्टियों को अवैधानिक रूप से ट्रस्ट से अलग किया गया है, जिसके खिलाफ अलग से याचिका लगी है, जिसकी सुनवाई लंबित है। इसके साथ ही वर्तमान ट्रस्टियों ने नियम विरुद्ध तरीके से व्यक्तिगत ऑक्शन कर जमीन को बेच दी है। 

कॉलेज की जमीन बिकने की खबर मिलते ही शहर से लेकर प्रदेश भर में इसका जमकर विरोध हुआ। कॉलेज के छात्रों ने कई दिनों तक लगातार आंदोलन किया। कलेक्टर से लेकर सचिव और मंत्री तक से शिकायत की गई। शासन पर आरोप लगे कि उसने जमीन खरीदी बिक्री का विरोध नहीं किया और किसी स्तर पर अपील नहीं की गई। सिंगल बेंच के आदेश के बाद लेकिन शासन की ओर से डिवीजन बेंच में अपील की गई। शासन की ओर से कहा गया कि यह शासकीय जमीन है। 1995-96 में यह जमीन शासन के अधीन हो गई थी लेकिन किन्हीं कारणों से उसका नामांतरण नहीं हो पाया था।

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