बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक मामले में याचिकाकर्ता के विरुद्ध जारी वसूली आदेश को निरस्त कर दिया। सेनानी 8वीं बटालियन को यह निर्देश दिया गया कि वे 6 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता से वसूल की गई राशि तत्काल वापस करें।
लालबाग, राजनांदगांव निवासी-एचआर. टोन्डर, 8वीं बटालियन, छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, राजनांदगांव में पुलिस विभाग में सहायक सेनानी (वर्ग-2) के पद पर पदस्थ थे। उनकी पदस्थापना के दौरान सेनानी, 8 वीं बटालियन, राजनांदगांव द्वारा एचआर. टोन्डर की सेवा पुस्तिका को जांच के लिए संयुक्त संचालक, कोष-लेखा एवं पेंशन कार्यालय भेजा गया। कार्यालय कोष लेखा एवं पेंशन द्वारा उनके सेवाकाल के दौरान अधिक वेतन भुगतान किया जाना पाया गया।
इस आधार पर सेनानी, 8वीं बटालियन, राजनांदगांव द्वारा सहायक सेनानी एचआर. टोन्डर के विरुद्ध 2 लाख 27 हजार 46 रुपए का वसूली आदेश जारी कर दिया गया। उक्त वसूली आदेश से क्षुब्ध होकर सहायक सेनानी, एचआर. टोन्डर ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं पीएस. निकिता के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर वसूली आदेश को चुनौती दी।कोर्ट के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट ऑफ पंजाब विरुद्ध रफीक मसीह एवं अन्य, थॉमस डेनियल विरुद्ध स्टेट ऑफ केरला और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा लाभाराम ध्रुव के प्रकरण में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि किसी भी शासकीय अधिकारी-कर्मचारी के सेवाकाल के दौरान 5 वर्ष पूर्व वेतन निर्धारण में त्रुटि के कारण यदि अधिक वेतन भुगतान किया गया है, यदि शासकीय अधिकारी-कर्मचारी से लिखित में उक्त अधिक वेतन भुगतान की वसूली हेतु सहमति प्राप्त कर ली गई है, फिर भी उक्त अधिकारी से अधिक वेतन भुगतान की वसूली नहीं की जा सकती। चूंकि याचिकाकर्ता को वर्ष 2006 से अधिक वेतन भुगतान किया गया था।
साथ ही याचिकाकर्ता के विरुद्ध वसूली आदेश जारी किये जाने से पूर्व कोई कारण बताओ नोटिस जारी कर सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। अतः याचिकाकर्ता द्वारा पूर्व में अधिक वेतन भुगतान की वसूली के लिए सहमति दिये जाने के बावजूद उससे अधिक वेतन भुगतान का हवाला देकर किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती।