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*"भाषा जब दिल से जुड़ी होती है, तो वो सिर्फ बोली नहीं – आत्मा बन जाती है…"* *डोडवानी*







*10 अप्रैल – ये तारीख सिर्फ कैलेंडर पर छपी हुई स्याही नहीं है,*

ये एक पूरे समुदाय की यादों, वेदनाओं, संघर्षों और गौरव की छाया है।

ये दिन है – सिंधी भाषा दिवस का।

*एक ऐसी भाषा…*

*जो अपने साथ सिर्फ शब्द नहीं*







*बल्कि इतिहास, संस्कृति, आत्म-सम्मान और आस्था लेकर चलती है।*

1947 में जब देश का विभाजन हुआ,

तो लाखों सिंधी भाइयों-बहनों को अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी।

वो ज़मीन, जहाँ उनकी यादें थीं…

वो मंदिर, जहाँ हर रोज़ विश्वास की आरती गूंजती थी…

वो आंगन, जहाँ माँ की ममता और दादी की कहानियाँ पलती थीं…

सब पीछे छूट गया।

लेकिन एक चीज़ जो हर विस्थापित सिंधी के साथ आई,

वो थी – उसकी भाषा… *सिंधी।*

*10 अप्रैल 1967 – वो दिन जब दुनिया ने हमें पहचाना*

सालों तक घर के बिना, राज्य के बिना,

इस भाषा को हमने अपनी छाती से लगा कर जिंदा रखा।

और फिर आया वो ऐतिहासिक दिन –

10 अप्रैल 1967, जब भारत सरकार ने सिंधी भाषा को

संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया।

उस दिन केवल एक भाषा को मान्यता नहीं मिली,

बल्कि एक पूरे समुदाय के संघर्ष को सम्मान मिला।


*सिंधी – सिर्फ भाषा नहीं, धड़कन है…*

सिंधी वो है जो—

माँ की लोरी में गूंजती है

झूलेलाल की आरती में बहती है

संत कंवरराम की भजनों में डोलती है

और नानी-दादी की बातों में आज भी जिंदा है

सिंधी वो जज़्बा है, जो छीनने पर भी मिटता नहीं…

जो बिखरने के बाद भी बंधा रहता है…

और जो वक्त के साथ और भी निखरता है।

*आज की पीढ़ी – और हमारी चुप्पी*


आज के बच्चे सिंधी नहीं जानते…

क्योंकि हमने उन्हें सिखाना बंद कर दिया।

हमें डर है कि अगर ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा –

तो एक दिन हमारी भाषा सिर्फ किताबों में रह जाएगी, दिलों में नहीं।


*10 अप्रैल – एक पुकार, एक वादा*

आइए, इस दिन को एक उत्सव नहीं, संकल्प बनाएं।

आइए, अपने घरों में फिर से सिंधी बोलें

अपने बच्चों को कहानियाँ सिंधी में सुनाएँ

सिंधी गीतों, भजनों, कविताओं को फिर से जीवंत करें

और सबसे ज़रूरी – सिंधी बोलने में गर्व करें, संकोच नहीं


भाषा अगर रहेगी, तो हम रहेंगे।

भाषा जिंदा रहेगी, तो इतिहास बोलता रहेगा।

भाषा बचेगी, तो पहचान अमर रहेगी।


*10 अप्रैल को हम सब मिलकर एक वादा करें—*

"हमारी सिंधी भाषा केवल अतीत नहीं,

वो हमारा वर्तमान है… और आने वाले कल की उम्मीद भी।

हम इसे मरने नहीं देंगे…

क्योंकि जब तक सिंधी बोलने वाला एक दिल भी धड़कता है,

ये भाषा अमर रहेगी!"


                      


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